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थाइरोइड: एक साइलेंट किलर; क्या है थाइरोइड, इसके लक्षण और इलाज

by IForHer Team
February 6, 2020

थाइरोइड एक ऐसी समस्या है जिससे हमारे देश में हज़ारों लोग प्रभावित होते हैं| इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बताएँगे की थाइरोइड क्या है, इसके लक्षण क्या हैं, और थाइरोइड के क्या इलाज हैं|

Thyroid causes and symptoms

क्या है थाइरोइड? (What is Thyroid)

थाइरोइड एक तरह की ग्रंथि है जो गले में सामने की ओर होती है। यह ग्रंथि हमारे शरीर के मेटाबॉल्जिम को नियंत्रण करती है। यह हम जो भोजन खाते हैं यह उसे उर्जा में बदलने का काम करती है। यह हमारे हृदय, मांसपेशियों, हड्डियों व कोलेस्ट्रोल को भी प्रभावित करती है।थाइरोइड को साइलेंट किलर भी कहा जाता है क्‍योंकि इसके लक्षण एक साथ नही दिखते है।

थाइरोइड की समस्या (Thyroid disease)

थाइरोइड की समस्या पिट्यूटरी ग्रंथि के कारण होती है। महिलाओं में रजोनिवृत्ति में असमानता भी थाइरोइड का कारण बनती है।

पुरूषों में थाइरोइड की समस्या के लक्षण समस्या के प्रकार पर निर्भर करता है – यह जीवन शैली में परिवर्तन , दवाओं की वज़ह से, बदलाव आदि हो सकते है।

थाइरोइड समस्या का टेस्ट (Thyroid test)

थाइरोइड के मरीजों को थाइरोइड फंक्शन (Thyriod Function) टेस्ट कराना चाहिए।

बच्‍चों में थाइरोइड (Thyroid in kids)

अक्‍सर बच्‍चों में थाइरोइड समस्‍या के लिए माता-पिता ही जिम्‍मेदार होते हैं। अगर गर्भावस्‍था के दौरान मां को थाइरोइड समस्‍या है तो बच्‍चे को भी थाइरोइड की समस्‍या हो सकती है। इसके अलावा मां के खान-पान से भी बच्‍चे का थाइरोइड फंक्‍शन प्रभावित होता है। अगर गर्भावस्‍था के दौरान मां के डाइट चार्ट में आयोडीनयुक्‍त खाद्य-पदार्थों का अभाव है तो इसका असर शिशु पर पड़ता है।

वैसे तो बड़ों, किशारों और बच्‍चों में थाइरोइड समस्‍या के लक्षण सामान्‍य होते हैं। लेकिन अगर बच्‍चों में थाइरोइड की समस्‍या हो तो उनका शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है। बच्‍चों में अगर थाइरोइड समस्‍या है तो बच्‍चों के चिकित्‍सक से संपर्क कीजिए।

थाइरोइड के कारण (Causes of Thyroid)

  • थायरायडिस – यह सिर्फ एक बढ़ा हुआ थाइरोइड ग्रंथि है, जिसमें थाइरोइड हार्मोन बनाने की क्षमता कम हो जाती है।
  • सोया उत्पादों का जररूत से अधिक प्रयोग भी थाइरोइड होने के कारण हो सकते है।
  • दवाएं – कई बार दवाओं के प्रतिकूल प्रभाव भी थाइरोइड की वजह होते हैं।
  • कई बार थाइरोइडकी समस्या पिट्यूटरी ग्रंथि के कारण भी होती है क्यों कि यह थायरायड ग्रंथि हार्मोन को उत्पादन करने के संकेत नहीं दे पाती।
  • भोजन में आयोडीन की कमी या ज्यादा इस्तेमाल भी थाइरोइड की समस्या को बढ़ावा दे सकती है।
  • कई बार सिर, गर्दन और चेस्ट की विकिरण थैरेपी के कारण या टोंसिल्स, लिम्फ नोड्स, थाइमस ग्रंथि की समस्या या मुंहासे के लिए विकिरण उपचार के कारण।
  • जब तनाव (stress) का स्तर बढ़ता है तो इसका सबसे ज्यादा असर हमारी थायरायड ग्रंथि पर पड़ता है। यह ग्रंथि हार्मोन के स्राव को बढ़ा देती है।
  • यदि आप के परिवार में किसी को थाइरोइड की समस्या है तो आपको थाइरोइड होने की संभावना ज्यादा रहती है। यह थाइरोइड का सबसे अहम कारण है।
  • ग्रेव्स रोग थाइरोइड का सबसे बड़ा कारण है। इसमें थायरायड ग्रंथि से थायरायड हार्मोन का स्राव बहुत अधिक बढ़ जाता है। ग्रेव्स रोग ज्यादातर 20 और 40 की उम्र के बीच की महिलाओं को प्रभावित करता है, क्योंकि ग्रेव्स रोग आनुवंशिक कारकों से संबंधित वंशानुगत विकार है, इसलिए थाइरोइड रोग एक ही परिवार में कई लोगों को प्रभावित कर सकता है।
  • थाइरोइड का अगला कारण है गर्भावस्था, जिसमें प्रसवोत्तर अवधि भी शामिल है। गर्भावस्था एक स्त्री के जीवन में ऐसा समय होता है जब उसके पूरे शरीर में बड़े पैमाने पर परिवर्तन होता है, और वह तनाव ग्रस्त रहती है।
  • रजोनिवृत्ति भी थाइरोइड का कारण है क्योंकि रजोनिवृत्ति के समय एक महिला में कई प्रकार के हार्मोनल परिवर्तन होते है। जो कई बार थाइरोइड की वजह बनती है।

थाइरोइड के लक्षण (Symptoms of Thyroid)

  • शरीर में की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाना
  • जल्दी थकान, शरीर सुस्त रहना, थोड़ा काम करते ही एनर्जी खत्म हो जाना
  • डिप्रेशन में रहने लगना, किसी भी काम में मन न लगना
  • याद्दाश्त कमजोर होना
  • मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होना

इन सभी समस्याओं को आम समझकर ज्यादातर लोग इग्नोर करते रहते हैं, जो बाद में खतरनाक साबित हो सकता है और कई बार तो जानलेवा साबित हो सकता है।

क्या है थाइरोइड ग्रंथि

थाइरोइड कोई रोग नहीं बल्कि एक ग्रंथि का नाम है जिसकी वजह से ये रोग होता है। लेकिन आम भाषा में लोग इस समस्या को भी थाइरोइड ही कहते हैं। दरअसल थाइरोइड गर्दन के निचले हिस्से में पाई जाने वाली एक इंडोक्राइन ग्रंथि है। ये ग्रंथि एडम्स एप्पल के ठीक नीचे होती है।

थाइरोइड ग्रंथि का नियंत्रण पिट्यूटरी ग्लैंड से होता है जबकि पिट्यूटरी ग्लैंड को हाइपोथेलमस कंट्रोल करता है। थाइरोइड ग्रंथि का काम थायरॉक्सिन हार्मोन बनाकर खून तक पहुंचाना है जिससे शरीर का मेटाबॉलिज्म नियंत्रित रहे। ये ग्रंथि दो प्रकार के हार्मोन बनाती है – १) टी3 जिसे ट्राई-आयोडो-थायरोनिन कहते हैं और २) टी4 जिसे थायरॉक्सिन कहते हैं।

जब थायराइज से निकलने वाले ये दोनों हार्मोन असंतुलित होते हैं तो थाइरोइड की समस्या हो जाती है।

थाइरोइड का परीक्षण (Diagnosis of Thyroid )

फिजियोलॉजी 
थाइरोइड ग्रंथि से हाइपोथैलमस, पिट्यूटरी ग्रंथियां और थाइरोइड सभी मिलकर थाइरॉक्सिन और ट्राइआयोडोथाइरोनाइन के निर्माण में सहयोग करते हैं। थाइरोइड को उकसाने वाले हार्मोन थाइरोइड से टी-3 और टी-4 को छोडते हैं। थाइरॉक्सिन या टी-4 थाइरोइड से‍ निकलने वाला मुख्य हार्मोन है। फिजियोलॉजी के जरिए इन हार्मोन की जांच लैब में की जाती है जिससे थाइरोइड का पता लगता है। इसलिए थाइरोइड की समस्या होने पर रोगी को फिजियोलॉजी करवाना चाहिए।

स्क्रीनिंग
स्क्रीनिंग के जरिए थाइरोइड से ग्रस्त मरीज की पूरी तरह से पॉजिटिव जांच संभव नहीं होती है लेकिन कई मामलों में थाइरोइड के मरीज के लिए स्क्रीनिंग भी फायदेमंद होती है। थाइरोइड के जन्मजात मरीज और शिशुओं की स्क्रीनिंग जांच से थाइरोइड का पता लग जाता है। मधुमेह रोगियों (टाइप-1 और टाइप-2) में स्क्रीइनिंग से थाइरोइड की जांच संभव है। टाइप-1 मधुमेह से पीडित महिला और बच्चा होने के तीन महीने बाद महिला की स्क्रीनिंग थाइरोइड के लिए की जा सकती है।

थाइरोइड फंक्शन टेस्ट्स (टीएफटी)
थाइरोइड से ग्रस्त मरीज के लिए थाइरोइड फंक्शन टेस्ट किया जाता है। इस जांच से यह निश्चित हो जाता है कि मरीज हाइपोथाइरोइड है या हाइपरथाइरोइड। इसके लिए थाइरोइड को उकसाने वाले हार्मोन की जांच की जाती है। 80-90 प्रतिशत मरीजों में टीएसएच सीरम ज्यादा घातक होता है। हाइपोथाइराजिड्म से ग्रस्त मरीज में टीएसएच का स्तर बढता है और हाइपरथाइराजिड्म के मरीज में टीएसएच का स्तर घटता है। टीएफटी जांच से टीएसएच सीरम की संवेदनशीलता का पता चलता है जिससे थाइरोइड के मरीज का इलाज समय से पहले किया जा सकता है।

अवलोकन 
थाइरोइड के मरीज के व्यवहार को देखकर कुछ हद तक थाइरोइड की जांच की जा सकती है। प्रसव के बाद महिला के स्‍वास्‍थ्‍य को देखकर थाइरोइड का पता लगाया जा सकता है। टाइप-1 मधुमेह से ग्रसित लोगों के दैनिक क्रियाकलापों को देखकर, गर्दन को हिलाने में या इधर-उधर देखने में दिक्कत होने पर, कई दिनों सामान्य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या फीवर या सर्दी-जुकाम आदि के द्वारा इसकी जांच की जा सकती है।

थाइरोइड का इलाज (Thyroid Treatment)

रेडियोएक्टिव आयोडीन ट्रीटमेंट
थाइरोइड के मरीज को रेडियोएक्टिव आयोडीन दवाई गोली या लिक्विड के द्वारा दिया जाता है। इस उपचार के द्वारा थाइरोइड की ज्यादा सक्रिय ग्रंथि को काटकर अलग किया जाता है। इसमें जो आयोडीन दिया जाता है वह आयोडीन स्कैन से अलग होता है। रेडियोएक्टिव आयोडीन को लगातार आयोडनी स्कैन चेकअप के बाद दिया जाता है और आयोडीन हाइपरथाइराइजिड्म के पहचान की पुष्टि करता है। रेडियोएक्टिव आयोडीन थाइरोइड की कोशिकाओं को समाप्त करते हैं। इस थेरेपी से शरीर को कोई भी साइड-इफेक्ट नहीं होता है। इस थेरेपी से 8-12 महीने में थाइरोइड की समस्या समाप्त हो जाती है।

सर्जरी
सर्जरी के द्वारा आंशिक रूप से थाइरोइड ग्रंथि को निकाल दिया जाता है, जो कि बहुत सामान्य तरीका है। थाइरोइड के मरीजों में सर्जरी के द्वारा उसके शरीर से थाइरोइड के ऊतकों को निकाला जाता है जो कि ज्यादा मात्रा में थाइरोइड के हार्मोन पैदा करते हैं। लेकिन सर्जरी से आसपास के ऊतकों पर भी प्रभाव पडता है। इसके अलावा मुंह की नसें और चार अन्य। ग्रंथियां (जिनको पैराथाइरोइड ग्रंथि कहते हैं) भी प्रभावित होती हैं जो कि शरीर में कैल्शियम स्तर को नियमित करती हैं। थाइरोइड की सर्जरी उन मरीजों को करानी चाहिए जिनको खाना निगलने में दिक्कत हो रही हो और सांस लेने में दिक्कत हो। प्रग्नेंट महिला और बच्चे जो कि थाइरोइड की दवाइयों को बर्दास्त नहीं कर सकते हैं उनके लिए सर्जरी उपयोगी है।

एंटीथाइरोइड गोलियां
थाइरोइड में सामान्य समस्याएं जैसे बुखार, गले में ख्रास जैसी समस्याएं होती हैं। यह छोटी समस्याएं थाइराड की वजह से हो सकती हैं इसलिए दवाईयां लेने से पहले जांच करानी चाहिए। थाइरोइड के मरीज को चिकित्सक से सलाह लेकर एंटीथाइरोइड की गोलियां खानी चाहिए। बिना डॉक्टर की सलाह के एंटीथाइरोइड की गोलियां आपके लिए हानिकारक हो सकती हैं।

खान-पान से थाइरोइड को कैसे कंट्रोल करे

थाइरोइड संबंधी सभी समस्याओं से बचना आसान तो नहीं है, लेकिन खानपान के जरिए इससे होने वाली समस्याओं को नियंत्रित किया जा सकता है। थाइरोइड ग्रंथि को उचित आयोडीन आहार से ठीक रखा जा सकता है। सी-फूड और आयोडीन युक्त नमक आदि का सेवन करना चाहिए। इसके साथ ही बहुत ज्यादा वो खाना खाने से बचें जिससे घेंघा होने की संभावना हो। पत्ता गोभी, फूल गोभी और शलगम आदि से दूर ही रहें क्योंकि इससे घेंघा बनने की संभावना रहती है। हायपरथायराइडिज्म, या थाइरोइड कैंसर को रोका तो नहीं जा सकता है, लेकिन जैसे ही आपको इसका कोई लक्षण दिखाई दे फौरन डॉक्टर से संपर्क करें।

थाइरोइड कम करने के घरेलू नुस्खे

  • फ्राइड फूड्स – थाइरोइड होने पर डॉक्टर इस हार्मोन को बनाने वाला ड्रग देता है। लेकिन, तला हुआ खाने से इस दवाई का असर कम हो जाता है।
  • चीनी – थाइरोइड होने पर ज़्यादा चीनी खाने से भी बचें। हो सके तो वो सारी डिशेज़ अवॉइड करें, जिनमें चीनी हो।
  • कॉफी – ज़्यादा कॉफी पीने से भी थाइरोइड से जुड़ी प्रॉब्लम्स हो सकती हैं। कॉफी में मौजूद एपिनेफ्रीन और नोरेपिनेफ्रीन थाइरोइड को बढ़ावा देते हैं।
  • गोभी से बचें – अगर आप थाइरोइड का ट्रीटमेंट ले रहे हैं, तो बंदगोभी और ब्रोकोली खाने से भी बचें।
  • ग्लूटेन – ग्लूटेन में ऐसे प्रोटीन्स होते हैं जो इम्यून सिस्टम को वीक करते हैं। इसीलिए, थाइरोइड होने पर इसे बिल्कुल अवॉइड करें।
  • सोया – वैस तो हाइपोथायराइडिज्म के इलाज के दौरान सोया नहीं खाना चाहिए। लेकिन, कहते हैं कि थाइरोइड की दवाई लेने के 4 घंटे बाद इसे खा सकते हैं।
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