अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो , कि दास्तां आगे और भी है!
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो, कि दास्ताँ आगे और भी है
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
अभी तो टूटी है कच्ची मिट्टी, अभी तो बस जिस्म ही गिरे हैं
अभी तो किरदार ही बुझे हैं.
अभी सुलगते हैं रूह के ग़म, अभी धड़कते हैं दर्द दिल के
अभी तो एहसास जी रहा है.
यह लौ बचा लो जो थक के किरदार की हथेली से गिर पड़ी है.
यह लौ बचा लो यहीं से उठेगी जुस्तजू फिर बगूला बनकर,
यहीं से उठेगा कोई किरदार फिर इसी रोशनी को लेकर,
कहीं तो अंजाम-ओ-जुस्तजू के सिरे मिलेंगे,
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
गुलज़ार ने अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो , कि दास्तां आगे और भी है! कविता के साथ साथ और भी बहुत सी दिल को छू जाने वाली रचनाएँ भी की हैं, उनकी और कवितायेँ आप इस लिंक – Gulzar – पर पढ़ सकते हैं।